एक सफर ऐसा भी part - 16
एक दिन देर रात देव, प्रीति को व्हाट्सएप पर ऑनलाइन देखता है।
देव - hii..
इतने दिनो बाद और इतनी देर रात को
प्रिति हाँ आज पूरी रात जागेगे
देव क्यो??
प्रिति मेरी माँ (नानी) का देहांँत हो गया है।
देव ये तो बहुत बुरा हुआ .।बहुत दुख हुआ सुनकर
प्रिति - दुख तो मुझे भी है, मगर इनका जाना ही ठीक था , इनका नीचला शरीर पैरालाइसिड हो गया था, बहुत तकलीफ सह रही थी।बेबस और लाचार अकेले पड़ी रहती थी। चलते फिरते इंसान के पास हर कोई बतियाने आ जाता है मगर वो आँसुओ मे भींगी रहती थी।काफी सालो से बिस्तर पर नरक भोग रही थी।
एक नर्स थी उनकी देखभाल के लिए मगर वो भी कभी आती कभी आती नहीं थी।
ऐसे नरक भोगने से तो अच्छा है, मोक्ष की प्राप्ति हो गई। माँ के बिना मेरा मयका जरूर सूना हो गया ,मगर मुझे तो तकलीफ और दुख सहने की आदत हो गई है ,संभाल लूँगी समय के साथ खुद को कहकर आँखो से आँसू बहने लगते है।
भाई भाभी दोनो नौकरी करते है। तुम्हें पता ही है।
बाऊजी के जाने के बाद (नानाजी) कौन देखने वाला था माँ को ..मेरी शादी के बाद से इनकी तबियत खराब रहने लगी।
देव - हम्म ..ये तो है।
बहुत देर तक उन दोनो की बात होती है।
सुबह सारे रिश्तेदार आ जाते है , घर मे रूदन और मातम का माहौल पसरा रहता है।दाह संँस्कार हो जाता है। रिश्तेदार भाई बहन को संतावना देकर चले जाते है।
प्रिति की माँ के जाने के बाद सभी अपने काम मे व्यस्त हो जाते है।
लेकिन सबसे ज्यादा प्रिति उनको मिस कर रही होती है। कमरे मे खाली बिस्तर काटने को दौड़ रहा था।
माँ के मरने के बाद प्रिति.वापस अपने ससुराल जाना चाहती थी, मगर मनु ने रोक लिया ..यह कहकर पूरा घर सूना हो जाएगा ,आई हो तो थोड़ा दिन और रूक जाओ।अपने भाई की बात को टाल न सकी ..रुक जाती है।
उसे अपने बच्चे अवि की बहुत याद आने लगती है। ससुराल मे अवि की खबर लेने के लिए फोन करती तो कोई उठाता भी नही था। ये तो प्रिति जानती थी की वो लोग अवि को अच्छे से लाड प्यार से रखते है। मगर माँ का मन कहाँ अपने बच्चे के बगैर लगता है।
मगर करे क्या..भाई ने शादी के बाद पहली बार रूकने की गुजारिश की थी .वो मना नहीं कर पाई।
प्रिति को बहुत दिन हो गए थे ,शालू की खैर खबर लिए हुए । शालिनी को फोन करके उसकी हाल चाल पूछती है। उसकी खैरियत सुनकर प्रिति को तसल्ली मिल जाती है। फोन रखते ही देव का फोन आ जाता है ,
प्रिति से उसकी तबियत के लिए पूछता है।
जवाब मे प्रिति ठीक ही हूँ कहती है।
प्रिति - कहांँ हो तुम ट्रेन की आवाज आ रही है
देव हांँ मैं ट्रेन में हूंँ ,काम से लखनऊ जा रहा हूंँ आप क्या कर रही हैं।
प्रीति कुछ नहीं
देव मैं भी फ्री हूंँ आप भी फ्री हैं
प्रिति जी तो फिर बताइए ना आगे क्या हुआ
प्रिति क्या करेंगे जानकर..
देव कुछ तो है जो आप हम से छुपा रही है
लगता अभी तक आपने मुझे अपना दिल से दोस्त माना नहीं है।
प्रिति ऐसी कोई बात नही है
देव तो फिर कैसी बात है ,आपको क्या लगता है आपके बारे मे जानकर क्या मै आपका उपहास करूंँगा ।
नहीं प्रिति जी सच्चे दोस्त ...अपने दोस्त को सही मशवरा देते है...उसके कठिन समय हाथ थामे रहते है।
मुसीबत मे ढाल बनकर खड़े हो जाते है।
प्रिति हम्म ये तो है ..पक्का न आप किसी से नही कहेंगे..वादा
देव वादा रहा आपसे प्रिति जी...
प्रिति खो जाती है उस लम्हो मे जब वो विदा होकर अपने मायके से प्रेम के गठबंधन मे बँधकर ससुराल पहुँच जाती है।
प्रिति देव को बताना शुरू करती है..।
वहांँ पहुंँचते ही मेरे स्वागत मे फूलो की वर्षा से की जाती है ,जिसे देखकर मेरे चेहरे पे मुस्कान तैर जाती है।
मेरी ननद आकर मेरे हाथ पकड़कर ,दूसरे हाथ से मेरे
लहँगे को पकड़कर घर के देहरी पर मुझे और प्रेम जी को इंँतजार करने कहती है।
मेरी सासु माँ आरती की थाल सजाकर हम दोनो को टिका लगाकर ,फूल छिड़क कर आरती करती है , नून राई फेरकर हम दोनो की नजर उतारती है।
आलते से दोनो हाथो की छाप दिवार पर लगाकर , चावल से भरा कलश गिराकर मुझे प्रवेश करने को कहती है।
गृहप्रवेश कर, मै सभी के चरण स्पर्श करती हूँ। सासु माँ देवी देवताओं की पूजा करवा देती है।
सारी रस्मे रीति रिवाज़ो को निभाते निभाते शाम हो जाती है।
सासु माँ बिट्टू दी को मुझे मेरे कमरे मे छोड़ कर आने को कहती है।
बहुत सुंंदर से सुसज्जित बड़ा सा कमरा ,फूल़ो की भिन्नी भिन्नी महक ,कमरे मे बड़ी से खिड़की गोधुली बेला का समय ,सिंदूरी आसमान,कलरव करते हुए घर लौटते हुए पंछीयो का झुंड, ठंडी ठंडी बयारे मेरे मन को गुदगुदा रही थी ,ऐसा प्रतीत हो रहा था मेरे साथ
इनका भी कोई खास दिन हो।
बिट्टू दी(ननद) आकर मुझे चाय नाश्ता देकर मुझे थोडे़ देर आराम करने को कह जाती है।
अनजान घर अंजान लोग मगर मै इतनी थकी हुई थी , भूख भी लगी हुई थी ,खा पीकर ,सुध बुध खोकर मजे से सो रही थी।
अचानक से बिट्टू दी आकर मुझे उठाती है , एकबार तो समझ मे नहीं आया कहाँ हुँ मै..दोनो हाथो से आँखे मसल कर , आँखे टिमटिमा कर , मै दी को एकटक देख रही थी।
बिट्टू दी "भाभी क्या हुआ ,उठो आठ बज गए।"
मै चौंककर कहती हूँ "आठ बज गए "
बिट्टू दी "हाँ भाभी ,चलो नीचे खाना खाने माँ बुला रही है आपको"
"दी मुझे बिल्कुल भूख नही है।"
बिट्टू दी" चलो थोड़ा सा खा लो ,अच्छा रूको मै ऊपर ही ला देती हूँ।"
मेरा रूम तीन माला मे था ..किचन पहले माला मे , मैने कहा रूको साथ मे ही चलूँगी , मैने अपनी साड़ी ठीक की , बाल बनाऐ और अपनी ननद के साथ नीचे खाना के लिए आ गई।
सासु माँ ने मुझे खाने मे मूँग ,चावल, कढी ,आलू की सब्जी ,मिक्स वेजिटेबल की सब्जी देती है।
मुझे बताती है ये शगुन है की सबसे पहले आज नई बहू खाना खाएँगी तभी बाकी सब खाएँगे।
खाना खाकर मै सबको जिमाने के लिए मम्मी जी की मदद करने जा रही थी, मम्मी ने मुझे अपने कमरे मे वापस अपनी ननद के साथ जाकर तैयार होने कहा.."बोली तुमरा जिंदगी का सबसे खास दिन है, काम तो जिंदगी भर करना है मगर आज नहीं।"
मै वापस अपने कमरे मे आकर सिर से लेकर पाँव तक साज श्रृंगार करके तैयार होकर प्रेम जी का आने का इंतजार करने लग जाती हूँ। मेरे दिल की धड़कने बुलैट ट्रेन की स्पीड मे धड़क रही थी। हाथ पाँव डर से ठंडे हो रहे थे। थोड़े देर बाद प्रेम जी आते है।
दो अंजान एक कमरे मे बंँद
ना वो कुछ बोल पा रहे थे न मै
उन्होंने अपना गला साफ किया
बातचीत की शुरुआत हुई
दोनो थोड़ा एकदूजे से सहज हुए
मेरे मेहंदी वाले हाथो को अपने हाथ मे लिया
प्यार की बरसात मे ना जाने कब भींग गए हम।
सुबह मेरी नींद जल्दी खुल गई थी। उठकर मै नहा धोकर तैयार होकर नीचे चली जाती हूँ । पापा जी पेपर पढ़ रहे थे उनको प्रणाम करती हूँ ।
अपने कमरे मे सासु माँ मेरे बाऊजी द्वारा दिए हुए दहेज को देखकर मन ही मन बहुत खुश हो रही थी।
मुझे देखकर सकपका जाती है।
कहती है इतनी जल्दी तैयार हो गई ,चलो तुम्हें चूल्हा पूजन करवा देती है फिर तुम ही नाश्तवा बना लेना।
पूजन करवा कर मुझे सारे समान कहाँ रखे हुए है, बताकर चली जाती है।
एक घंटे मे मैने सारी रसोई बना ली थी और मीठा मे
बेसन का हल्वा बना लिया।
तब तक मै सभी तैयार होकर खाने के लिए डायनिंग टेबल मे आ जाते है , मै अकेले ही सबको गर्म पूडियांँ
तल कर खिला रही थी ,पापा जी ने मम्मी को बुलाया और बोला बहु की मदद करो ..देखो कितना स्वादिष्ट खाना बनाया ..पेट भर गया मगर मन नहीं।
प्रेम जी को बाकी सभी को मेरे हाथो का खाना बहुत पसंद आता है।
मेरे ससुर जी नेग मे मुझे ग्यारह सौ रूपये देते है..
मुझे आशीर्वाद देते हैं। मम्मी जी को मेरे कपड़े गहने सौंप देने को दुकान जाने से पहले कहकर जाते है। कुछ चाहिए तो मुझे या प्रेम को फोन कर देना।
मेरे ससुर जी बहुत सुलझे हुए इंसान थे मन की बात को तुरंत भाप लेते थे..मम्मी जी को हमेशा बोलते थे की पराई घर की बेटी लाई हो , उसका ख्याल भी रखा करो..सिर्फ घर का काम मे मत उलझाया रखो।
पापाजी मुझे हर महीने मेरे हाथ खर्च के लिए एक हजार रूपये दिया करते थे। मै कहती थी भी उनको मुझे पैसो का क्या काम ,आप आगे से आगे मेरी सभी जरूरतो को पूरा कर देते है ..
बेटा पैसे पास मे होने से काम मे ही आते है ।जमा कर लिया करो...
मै बहुत खुश थी अपने ससुराल मे .मुझे किसी चीज की कमी नहीं थी।
शादी के तीन महीने बाद मै प्रेग्नेंट हो जाती हूँ।
To be continued.....
Sana khan
28-Aug-2021 07:49 PM
NYC ✨
Reply
Fiza Tanvi
27-Aug-2021 05:17 PM
Nice 💐💐💐
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